लाल किला का इतिहास
आज हम बात करेंगे ऐतिहासिक लालकिला के बारे में जो लाल बलुआ पत्थर से बना है ये किला ना कि मुगल ससाको का राजनीतिक केंद्र हुआ करता था ये ऐसी इमारत थी जिस्पे मुगल शासकों का 200 साल तक राज रहा था। मुगल बादशाह शाहजहां ने। इस इमारत को बनाने के लिए अहमद लाहौरी को चुना था। जो ताज महल को बनवाने का काम भी किया था। ये 250 एकर में फेला यह किला मुगल राजसाही और अंग्रेजी के खिलाफ संघर्ष ब्यान करती है इस किले का इतिहास बेहद दिलचस्प है।
मुगल बादशाह के 7 पिदियो ने सासन कियान था या शाहजहां जो थे पचवे मुगल बादशाह थे उन्होंने 1626 मे आगरा की गद्दी स्मभली थी और आगरा को राजधानी घोषित किया गया था। और मुग़लो के समय आगरा राजधानी हुआ करती थी।11 साल तक वहा शासन किया था फिर दिल्ली को बसाया गया जिसे शाहजहानाबाद के नाम से जाना जाता था और दिल्ली 6 बार उजड़ी और सातवीं बार बस पाई थी
लाल किले को बनाना शुरू किया गया था 1639 में और 10 साल बाद बनकर तैयार हुआ 1648 में लाल किले को बनाते समय कारीगरों को बहुत से समस्याओं का सामना करना पड़ा था
लाल किले के 4 दरवाजे हैं। जिनके नाम है दिल्ली गेट ‚लाहोरी गेट ‚जमुना गेट ‚सलीम गेट‚1947 में भारत देश आजाद होने पर जवाहरलाल नेहरू ने वहां लाल किले से झंडा फहराया था। उस दिन से हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री वहां से झंडा फहराते हैं। और हमारे सभी देशवासियों के लिए एक भाषण भी देते हैं। लाल किले पर नेशनल झंडे के अलावा इंडियन आर्मी का फ्लैग भी होता है।
लाल किले के पास एक बाजार है छत्ता चौक कहां जाता था। जिसको अब मीना बाजार के नाम से जाना जाता है। या छत्ता चौक का निर्माण शाहजहां की दो बेटियों के लिए किया गया था। वहां स्त्रियों का हर सामान मिलता था। जैसे गहने बर्तन वस्त्र इत्यादि और शाहजहां की दोनों बेटियों को बाहर जाने की जरूरत नहीं पढ़ती थी।
दीवाने आम
दीवाने आम को हम ऐसे समझ सकते हैं जैसे आज के समय पर सुप्रीम कोर्ट अदालत होते हैं उस तरह से दीवाने आम हुआ करते थे मर्द के लिए अलग जगह होती थी और औरतों के लिए अलग जगह होती थी दीवाने आम में । मुगलों के समय पर दीवाने आम में आम लोग अपनी समस्या लेकर राजा के पास आते थे। उनकी समस्याओं को लेकर एक सफल फैसला सुनाता था।
दीवाने खास
दीवानेखास एक ऐसी जगह थी इसमें खास लोग ही आ सकते थे जैसे मंत्रियों बादशाह और उनके अनुयाई नेहा में कुछ खास मुद्दों पर बातचीत होती थी। दीवाने खास को बहुत ही शानदार बनाया गया था उसके अंदर हीरे मोती और जवाहरात जैसे चीजें लगी हुई थी उनकी दीवारें बहुत खूबसूरत थी। दीवानेखास में एक तख्ते ताऊस हुआ करता था जिसे शाहजहां ने बनवाया था 1665 में। इसमें कोहिनूर हीरा जड़ा हुआ था।
मुमताज महल
मुमताज महल को सन 1911 में पहला म्यूजियम बनाया गया जिसमें राजा के साजो सामान जैसे बर्तन कपड़े कुर्सी चेयर गद्दी यह सब रखा गया था।
लाल किला से जुड़ी कुछ अनोखी बातें
दिल्ली में स्थित लाल किले का नाम लाल बलुआ पत्थर से बनी सीमा की वजह से था। नाम अंग्रेजों के समय में पड़ा था। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि लाल किले का असली नाम किला ए मुबारक है। यह नाम शाहजहां ने दिया था।
1638 में शाहजहां ने किला ए मुबारक बनवाने का हुकुम दिया था।
लाल किले का निर्माण 1638 में शुरू किया गया और 10 साल बाद 1648 में यह बनकर तैयार हुआ था उस समय शाहजहां अफगानिस्तान के (काबुल ) में थे जब उनको यह खबर मिली की लाल किला बनकर तैयार हो चुका है तो वह फौरन दिल्ली आ गए।
लाल किले के दो मुख्य दरवाजे थे लाहोरी दरवाजा और दिल्ली गेट शाहजहां नमाज पढ़ने के लिए दिल्ली दरवाजा के जरिए जामा मस्जिद में जाते थे। लेकिन शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने लाल किले के अंदर ही अपने लिए और अपनी बेगमो के लिए मस्जिद बनवा ली थी। जिसका नाम मोती मस्जिद से जाना जाता है।
लाल किला का दिल्ली दरवाजा आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया है। आम लोग सिर्फ लाहौरी दरवाजा से अंदर जा सकते हैं।
लाहोरी दरवाजे का नाम लाहौरी दरवाजा इसीलिए था क्योंकि। जमाने में तीन शहर दिल्ली‚आगरा‚ लाहौर इतिहासिक राजनीतिक दृष्टि से बड़े महत्वपूर्ण थे।
औरंगजेब ने लाहोरी दरवाजा के सामने एक दीवार बनवा दी थी जिसका नाम घूंघट वाली दीवार था। दिल्लीचौक से लाहौरी दरवाजा बेदी खूबसूरत नजर आता था लेकिन औरंगजेब ने यह दीवार बनाकर उसकी खूबसूरती ना जाने छीन ही ली हो। यह दीवार इसलिए बनाया था क्योंकि किले को और सुरक्षित किया जाए। इस दीवार की वजह से किले की खूबसूरती बहुत खराब हो चुकी थी। जब यह शाहजहां को पता चला तो उन्होंने आगरा के जेल में रहकर खत लिखा। और यह स्पष्ट किया कि यह दीवार बनाकर ना जाने तुमने किले की खूबसूरती ही छीन ली हो।
जवाहर लाल नेहरू ने 1947 में भारत आजाद होने पर घूंघट वाली दीवार पर चढ़कर झंडा फहराया था। और यह सिलसिला अब तक चला आ रहा है। जो भी प्रधानमंत्री बनता है वह 15 अगस्त को झंडा फहराता है।
लाल किला जाने का समय
किला खुलने और बंद होने का समय:- सुबह 7:00 बजे से शाम के 6:00 बजे तक खुला होता है
खुले रहने का दिन:- लाल किला मंगलवार से रविवार तक खुला रहता है
बंद रहने का दिन:- सोमवार
लाल किला प्रवेश करने का शुल्क:- बच्चों के लिए कोई शुल्क नहीं है। लेकिन बड़ों के लिए ₹30 से ₹60 तक का शुल्क लगता है लाल किले के अंदर जाने के लिए। और फोन कंट्री के लोगों के लिए ढाई सौ से ₹300 तक का शुल्क होता है
लाल किला आने का सबसे अच्छा महीना नवंबर से फरवरी तक होता है
यहां आने का साधन:- बस मेट्रो कार इत्यादि
मेट्रो लाइन:- लाल किला (वॉयलेट लाइन) और चांदनी चौक (येलो लाइन)
.png)

.png)
).png)
)%20(1).png)
0 टिप्पणियाँ