जामा मस्जिद
आज हम बात करेंगे जामा मस्जिद के बारे में जो दिल्ली में स्थित है। मस्जिद का सपना मुगल बादशाह शाहजहां ने देखा था। सपना एक ऐसी मस्जिद का जहां पर इबादत गा ऐसी हो जिससे मन में अपने आप ही इबादत करने का भाव जागे। शाहजहां यह चाहते थे कि उनके दरबार से ऊंचा दरबार खुदा का हो। इतना ऊंचा की शाहजहां का दरबार खुदा के इस दरबार से नीचा हो। इसलिए शाहजहां को जामा मस्जिद बनवाने के लिए लाल किला के इर्द-गिर्द ही खाली स्थान की तलाश थी। और साहब और शाहजहां को यह सफलता प्राप्त हुई। राजस्थान भोजनालय पहाड़ी पर स्थित थी। छोटी सी पहाड़ी को मस्जिद बनाने के लिए चुना गया। शाहजहां के दरबार के ठीक सामने ही थी। शाहजहां के सपने के तहत इस मस्जिद का काम शुरू कर दिया गया। 6 अक्टूबर 1650 को। जामा मस्जिद को बनाने के लिए 5000 मजदूरों ने दिन-रात इस मस्जिद को तराशा इस मस्जिद के तीन गुंबद बनाए गए और इबादत के लिए अंदर संगमरमर की पत्थर से तराशा गया। और इस मस्जिद के दोनों तरफ 41 मीटर की मीनार बनाई गई.। इस इमारत को बनाने के लिए उस वक्त तकरीबन 10 लाख रुपए की लागत आई। पहले इस मस्जिद का नाम मस्जिदे जेहनुमा था। इसका अर्थ है पूरी दुनिया को देखने वाली मस्जिद इसके बड़े आकार की वजह से लोग यहां जमा होने लगे और इस वजह से इस मस्जिद का नाम जामा मस्जिद रख दिया गया। जिस वक्त इस मस्जिद का निर्माण हुआ उस इंदौर में मुगल वास्तुकला चरम सीमा पर थी ।
शाहजहाँ का सपना
यह वही दौर था इस्लामी वास्तुकला इमारतों में देखने को मिली चुकी शाहजहां ने एक सपना देखा था। भारत में सबसे खूबसूरत शहर बनाएगा इसीलिए शाहजहां ने शाहजहां बाद बसाया था। जो फिलहाल पुरानी दिल्ली के रूप में जाना जाता है। जामा मस्जिद तैयार की गई थी जो मुगलिया कला का बड़ा उदाहरण बनी मस्जिद की नक्काशी में हिंदू एवं जैन वास्तु कला को भी देखा जा सकता है। गई जामा मस्जिद शाहजहां की आखिरी इमारत थी इतना ही नहीं मुगल शासक शाहजहां का यह आखरी आर्किटेक्चरल काम था इसके बाद उन्होंने किसी कलात्मक इमारत का निर्माण नहीं करवाया मस्जिद जब तैयार हुई तो इसके इमाम को लेकर भी काफी जद्दोजहद हुई
इमाम की खोज
बादशाह चाहते थे कि इस खास मस्जिद के इमाम भी खास हो काफी समय तक इमाम की तलाश की गई जो उज्बेकिस्तान क एक छोटे से शहर बुखार में जाकर खत्म हुई इमाम के लिए यहां से एक नाम सामने आया था |सैयद अब्दुल गफूर शादी में 24 जुलाई 1656 को जामा मस्जिद में पहली बार नमाज अदा की इस दिन के साथ शाहजहां और उनके सभी दरबारियों ने पहली बार जामा मस्जिद में नमाज अदा की मुगल बादशाह ने इमाम अब्दुल गफूर को सल्तनत की पदवी दी इसके बाद उनका खानदानी इस मस्जिद के इमाम करता चला आ रहा है अब्दुल शकूर इसके बाद सैयद अब्दुल रहीम सय्यद अब्दुल रहमान अब्दुल करीम शाह सैयद अमीर अहमद अली सैयद मोहम्मद सैयद अहमद बुखारी इमाम बने । क्योंकि ऊंची पहाड़ी पर है इसलिए दूर से दिखाई देती है ताकि आसपास के इलाकों से दिखाई दे सके। बड़ी सीढ़ियां और बड़े प्रवेश द्वार इस ऐतिहासिक मस्जिद की अनोखी बात हैं।
जामा मस्जिद की ख़ूबसूरती
जामा मस्जिद का प्रार्थना ग्रह बहुत ही सुंदर है।इसमें 11 मेहराब है इसमें बीच वाला मेहराब अन्य से बहुत बहुत बड़ा है। मस्जिद का मुख्य प्रवेश लाल किले के सामने पूर्वी तरफ से है क्योंकि यह पहले भी सम्राट द्वारा उपयोग में लाया जाता था यही कारण है कि जामा मस्जिद का पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है अगर आप दिल्ली जाते हैं ऐतिहासिक जामा मस्जिद जरूर जाएं यह आपको बहुत ही अच्छा अनुभव दिलाएगा।
जामा मस्जिद खुलने का समय या प्रवेश शुल्क
या मस्जिद सुबह 7:00 बजे से दोपहर के 12:00 बजे तक और दोपहर के 1:00 बजे से शाम के 6:30 बजे तक खुलता है। मस्जिद में आप किसी भी दिन जा सकते हैं मस्जिद में जाने के लिए आपको कोई भी शुल्क नहीं देना पड़ेगा। और इबादत के पर्यटक को आना मना है।
जामा मस्जिद में सबसे अच्छे होटल
1066-67, पाई वालान, दरीबा, 3, जामा मस्जिद रोड, सामने। गेट नंबर, नई दिल्ली, दिल्ली 11006
1056-59 नंबर 3, पास, जामा मस्जिद रोड, दिल्ली, 11006
899, मोटर मार्केट, छत्ता शेख मंगलू के पास, जामा मस्जिद, नई दिल्ली, दिल्ली 110006
जामा मस्जिद चांदनी चौक नई दिल्ली 11006
जामा मस्जिद चांदनी चौक नई दिल्ली, यह जामा मस्जिद का सबसे बड़ा बाजार है, यहां कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक सामान की बहुत सारी वैरायटी है, जिन्हें आप खरीद सकते हैं और यहां बहुत सारे होटल हैं, जहां आप जाकर लंच कर सकते हैं और चिकन फ्राई मोहब्बत का सरबत जैसे खाद्य पदार्थ भी हैं। क्या एक बाजार भी निकटतम है जिसे आप चोर बाजार कह सकते हैं, आपको इलेक्ट्रॉनिक आइटम मिलता है जो बहुत चिप कीमत है
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